Kavi Ka Pyar

 

कवि का प्यार

सुबह का रियाज़, तुम्हारे नाम
शाम का रियाज़, तुम्हारे नाम;
धोरे पर बैठकर सुरों का क्रमन
गायन का अभ्यास, तुम्हारे नाम।

कलम का वर्णन सिर्फ तुम्हारी याद
कविता का भाव सिर्फ तुम्हारी तारीफ;
अन्तरे के अल्फाज़  तुमको समर्पित 
मुखड़े के शब्दों में  तुम्हारी तशरीफ़। 

यगण-तगण-मगण हैं तुम्हारे लिए
पद-छंद-शायरी तुम्हें देख बुनते हैं;
हमारी जिन्दगी तो बस मुक्तक ही है 
वर्ण-शब्द-मात्रा तुम्हारे लिए गिनते है। 

दोहे सोरठे वाले बीजता था जो बीज़ 
अब वो पककर फसल बन चुकी है;
चंद शब्दों की थी दोस्ती की चौपाइ
मेरे प्यार की अब गज़ल बन चुकी है। 

तुम मेरी बेरुखी जिंदगी का अलंकार हो 
तुम तुलसी का दोहा, खैयाम की रुबाई हो;
मुझे पाश से शिव में बदलकर रख दिया 
'श्याम' के पास तुम 'लूना' बनकर आई हो।

~Shyam Sunder 

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