All the things in this world are relative but I am in The Rest Frame of myself.
आस्था को रक्त की हसरत क्यूँइंसान को इंसान से नफरत क्यूँजब खुदा एक है तरीके अलगधर्म के अपमान की जुर्रत क्यूँइंसान में इंसानियत नहीं रहीपर हैवानियत की कसरत क्यूँमिल कर रहने से होता है भलाफिर ना मिलने की फितरत क्यूँजो मन से माने वो ही तो है धर्म'श्याम' फिर प्रचार की जरूरत क्यूँ?
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