Kisan

यहीं खड़ा हूं मैं तुम मुझे टस से मस नहीं कर सकते
मेरे हाथ पर जो निशान है कुदाली का है
मेरे साथ तुम किसानियत पर बहस नहीं कर सकते।

क्या सेवक सेवा का धर्म भूल गया
क्या हमने तुम्हें चुना नहीं है?
कोई आए और बजाकर चला जाए
इंसान है कोई झुनझुना नहीं है।

राजनीति हमें बेशक नहीं आती
क्योंकि हम सारी उम्र मेहनत करते हैं,
माथे पर पसीने की बूंदे हमेशा रहती है
हम ही हैं जो दुनिया का पेट भरते हैं।

शोर मचाने से सही नहीं होगा
जो गलत है वह गलत रहेगा,
अगर मत से हो सकता है बदलाव
तो बदलाव का हमारा मत रहेगा।

So you read this poem and if you like it you may like my other poems too. Check out this one:

खेत से लौटते किसान

 If you like this post, share it with your friends. It boosts my confidence. I publish a post every Thursday. 

Thank You!!


Comments